Friday 23 October 2015

ऐसे जग का सृजन करो,माँ।

ऐसे जग का सृजन करो,माँ।
ऐसे  जग का  सृजन  करो, माँ।
अविरल  वहे  प्रेम  की सरिता,
मानव - मानव   में  प्यार  हो।
फूलें   फलें   फूल   बगिया  के,
काँटों   का   हृदय  उदार  हो।
जिस मग में कन्टक हों पग-पग,
ऐसे  मग  का  हरण  करो, माँ।
ऐसे  जग का  सृजन  करो, माँ।

पर्वत  सागर  में    समता  हो,
भेद-भाव  का  नाम  नहीं  हो।
दौलत  के   पापी   हाथों   में,
बिकता  ना  ईमान  कहीं  हो।
लंका  में   सीता  को  भय  हो,
उस रावण का हनन करो, माँ।
ऐसे  जग का  सृजन करो, माँ।
  
परहित  का  आदर्श  जहाँ हो,
घृणा-द्वेश-अभिमान  नहीं हो।
मन-वचन-कर्म का शासन हो,
सत्य जहाँ  बदनाम  नहीं हो।
जन-जन  में   फैले  खुशहाली,
घृणा अहम् का दमन करो माँ।
ऐसे  जग का सृजन  करो, माँ।

धन  में   विद्या  अग्रगण्य  हो,
सौम्य    मनुज    श्रृंगार   हो।
सरस्वती, दो  तेज किरण-सा,
हर   उपवन   उजियार   हो।
शीतल,स्वच्छ,समीर सुरभि हो,
उस उपवन का वपन करो, माँ।
ऐसे  जग का  सृजन  करो, माँ।











...आनन्द विश्वास

Thursday 15 October 2015

फल खाओगे, बल पाओगे

फल खाओगे, बल पाओगे
...आनन्द विश्वास
फल   खाओगे, बल   पाओगे,
सुन्दर  तन  का  हल पाओगे।
काजू  किशमिश  और मखाने,
शक्ति-पुंज   हैं    जाने   माने।

एप्पल गुण की खान सुनो तुम,
सबसे  पहले  इसे  चुनो  तुम।
छिलका सहित चबाकर खाओ,
या  फिर इसका  शेक  बनाओ।
देखो, आम   फलों  का  राजा,
सीज़न  फल है  खाओ  ताजा।
काटो,  चूँसो,  ज्यूस  बनाओ,
पना,  मुरब्बा, जैम  बनाओ।

चीकू,  लीची,  जामुन, केला,
इनका स्वाद  बड़ा अलवेला।
मौसम्बी  का ज्यूस  निराला,
पी जाओ  बस डाल मसाला।
और नारियल  पानी  पीकर,
दौड़ो, खेलो प्यास  बुझाकर।
खेल खेलकर जब थक जाओ,
नींबू   पानी   गटको  पाओ।

सुपर  फूड  है   सुनो  अनार,
दूर   करे  यह  रक्त  विकार।
इसको   खाओ   प्रातः काल,
चेहरा  दमके  हर दम लाल।
सबसे बढ़िया मस्त चुकन्दर,
खाओ इसको  बनो कलन्दर।
कन्दमूल   फल  सबसे  भारी,
इसकी  लीला  सबसे  न्यारी।

खाना, पीना, लिखना, पढ़ना,
बच्चो   तुमको   आगे   बढ़ना।
इसीलिए  तो   कहता   राजा,
फल खाकर मन कर लो ताजा।
...आनन्द विश्वास
चित्र गूगल से साभार

Sunday 11 October 2015

बन सकते तुम अच्छे बच्चे

बन सकते तुम अच्छे बच्चे
...आनन्द विश्वास
सुबह   सबेरे   जल्दी  जगते,
और  रात  को  जल्दी  सोते।
ऐसा    करते    अच्छे   बच्चे,
बन  सकते  तुम अच्छे  बच्चे।

सिट-अप करते,पुश-अप करते,
और  तेल  की  मालिश करते।
कसरत   करते   अच्छे  बच्चे,
बन  सकते  तुम  अच्छे  बच्चे।
त्राटक   करते,  योगा  करते,
वॉकिंग करते, जौगिंग करते।
स्वास्थ्य  सँवारें  अच्छे  बच्चे,
बन  सकते  तुम  अच्छे बच्चे।

मात पिता गुरु  आज्ञा  मानें,
अच्छा  बुरा  स्वयं पहचानें।
सबको   भाते   अच्छे   बच्चे,
बन  सकते  तुम  अच्छे बच्चे।
दुःख में सुख में सम रहते हैं,
दूजों  के ग़म  कम  करते हैं।
सत्-पथ चलते  अच्छे  बच्चे,
बन  सकते तुम  अच्छे बच्चे।

जाति-पाँति से ऊपर उठकर,
मानव-सेवा  शिरोधार्य कर।
सेवा   करते    अच्छे   बच्चे,
बन  सकते  तुम  अच्छे बच्चे। 
...आनन्द विश्वास

Wednesday 7 October 2015

दूध दही घी माखन खाओ

दूध दही घी माखन खाओ
...आनन्द विश्वास

दूध दही घी  माखन  खाओ,
हृष्ट-पुष्ट   बच्चो  बन  जाओ।
सुनो  दूध की  लीला न्यारी,
सभी  तत्व  इसमें  हैं भारी।

दूध   मलाई   जो   खाएगा,
बलशाली  वह  हो जाएगा।
सबसे  अच्छा दूध  गाय का,
पीकर  देखो, चखो जायका। 

काजू किशमिश मेवा डालो,
और  दूध को  जरा उबालो।
थोड़ी चीनी  और मिला लो,
झटपट गटको मूँछ बना लो।

मेवे   वाली    शाही   खीर,
सब्जी  खाओ  मटर  पनीर।
मथुरा    वाले   पेड़े   खाओ,
रबड़ी  खाओ,  खाते  जाओ।

और  जलेबी   देशी  घी  की,
बिना  दूध  के लगती फीकी।
गर्म   दूध  में   डालो  खाओ,
और  पेट  पर  हाथ  घुमाओ।

गाजर  हलवा, लौकी हलवा,
रसगुल्ले   का  देखो  जलवा।
तड़के  वाली  छाछ निराली,
लस्सी पिओ  भटिण्डे वाली।

एप्पल, मेंगो शेक  पिओ जी,
आइस्क्रीम का कप ले लोजी।
दूध   पूर्ण  भोजन  है  भाई,
देखो   मुनिया  टॉफी  लाई।

...आनन्द विश्वास
चित्र गूगल से साभार

Sunday 4 October 2015

लौट जाओ...

लौट जाओ...
...आनन्द विश्वास
तम,
तुम्हारा वास्ता क्या,
इस नगर से।
छोड़ दो यह रास्ता,
अब दूर जाओ,
इस डगर से।
ये नगर है सूर्य-वंशी,
राम का है, कर्ण का, हनुमान का है।
सत्य का है, ज्ञान का, विज्ञान का है।
हम उजाले के उपासक,
उजाले हम को भाये हैं।
तुम्हारे छल कपट हमको,
कभी ना रास आये हैं।
जागरण का गीत,
सूरज ने सुनाया है।
करेंगे दूर हम तम को,
यही अब मन बनाया है।
भोर की पहली किरण का,
आगमन होगा सबेरे।
मन में उजाला हो गया है,
दूर होंगे अब अँधेरे।
जग जगा है, चेत जाओ,
लौट जाओ गाँव अपने।
अब न फैलाओ,
यहाँ पर पाँव अपने।
सौगंध है तुमको,
तुम्हारी कालिमा की।
प्रियतमा की,
तम तुम्हारी लालिमा की।
लौट जाओ, लौट जाओ।
अब न आना, भूल कर भी इस नगर में।
लौट जाओ, लौट जाओ, लौट जाओ।
... आनन्द विश्वास